आज मेरे देश की
हालत बड़ी खराब हो गयी है. सभी लोग अपने अपने स्वार्थ को लेकर चिंतित है. कल क्या
होगा किसी ने नहीं जाना लेकिन एक समझदारी की भावना हमारे अंदर निहित होनी चाहिए जो
भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण बना सके . ऐसी भावना का न होना ही हमारे सतत विकास के
लिए एक सबसे बड़ी बाधा है.
अभी कुछ दिन पहले एक नेक भले आदमी के
द्वारा कुछ अच्छे मुद्दे (भ्रष्टाचार) समाज के सामने आये. जिसके बारे में यह कहना
अनुचित होगा की क्या उनका अपना कोई स्वार्थ निहित था या नहीं. लेकिन सबसे अच्छी
बात यह थी की समाज ने उनके विचारों से सहमति दिखाई और उनका साथ दिया. लेकिन सरकार
और समाज के बीच जो रस्साकस्सी चली उससे यह देख पाना आसान हो गया की सरकार और समाज
के बीच कितनी दूरिया है. शायद समाज की माग सरकार को रास नहीं आ रही है.
हालाँकि, अब वाद-प्रतिवाद का दौर शुरू
हो गया है (सरकार और समाज के बीच : अन्नावाद) और हो भी क्यों
न, हम भारतीयों के लिए हमेशा कुछ न कुछ काम (जैसे धार्मिक आंदोलन) चाहिए. क्या यही हम भारतीयों
की पहचान है ? क्या हमें अपने बेहतर कल के बारे में
नहीं सोचना चाहिए ? अगर हम कहे की लीबिया और पाकिस्तान
जैसे देशों में गृह-युद्ध शुरू हो गया है . तो इस भारत के लिए यह कहना कोई
अतिशयोक्ति वाली बात नहीं होगी की भारत में तो हमेशा गृह-युद्ध सरकार और समाज के
बीच चलता रहता है . और अच्छी बात यह की हमें इसी में जीने की आदत भी हो गयी है .
क्योकि जब कभी कोई किसी समाज की आवाज को उठाने की कोशिश करता है तो एक समाज का
दूसरा वर्ग उसे रोकने लगता है. शायद यही सब चीजे जो
हमारे उन उद्देश्यों से भटका देती है. और इस तरह हम भारतीय गोल गोल घूमते नजर आते
है . कही न कही कुछ बदलाव की जरुरत है . इसलिए स्वयं को तैयार होना पड़ेगा और एक होकर काम करना पड़ेगा. शायद यही समय की मांग है !
नरेंद्र पटेल
नई दिल्ली